Tuesday, September 17, 2024
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जस्मिन शाह, अक्षय मराठे राज्यों में चल रहे चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुद्दों का चयन है। ‘दिल्ली मॉडल’ के बल पर लड़ते हुए आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव अभियान को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर केंद्रित रखा है, जिन्हें भारतीय राजनीति में लंबे समय से वर्जित माना जाता रहा है और जो बीजेपी-कांग्रेस की राजनीतिक शब्दावली में भी नहीं आता। ऐसा ही एक मुद्दा जिसे लंबे समय तक राजनीतिक अभियानों में अनदेखा किया गया, वह है भारत की महिलाओं की दयनीय स्थिति। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार 2021 में लिंग अंतर सूचकांक में 156 देशों में से भारत 140 वें स्थान पर है। पिछली बार के मुकाबले 28 स्थानों की गिरावट है। 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए ‘आप’ द्वारा किए गए वादे महिलाओं की स्थिति में सुधार का एक शक्तिशाली अजेंडा पेश करते हैं। भारतीय महिलाओं का जीवन आसान नहीं है। महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी 2005 में 31.8 फीसदी के अपने चरम पर पहुंचने के बाद पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिर रही है। महामारी की चपेट में आने के बाद यह अब तक के सबसे निचले 9.4 फीसदी पर आ गई है। महिलाओं में बेरोजगारी भी पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है। शहरी महिला बेरोजगारी दर 21.9 फीसदी और पुरुष बेरोजगारी दर 11.7 फीसदी है। महामारी से पहले के सरकारी स्कूलों के नामांकन के आंकड़े बताते हैं कि भारत के सरकारी स्कूलों में लडक़ों की तुलना में लड़कियां अधिक हैं। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (्रस्श्वक्र) 2020 से पता चला है कि 6-8 वर्ष की लड़कियों में से 62 फीसदी सरकारी स्कूलों में जाती हैं और बाकी निजी स्कूलों में। लडक़ों में आंकड़ा 52.1 फीसदी है। इसका एक कारण यह भी है कि परिवार लड़कियों की तुलना में लडक़ों की शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं। सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या अधिक होने का अर्थ यह भी है कि सार्वजनिक शिक्षा पर खर्च किया गया रुपया लडक़ों की तुलना में लड़कियों को अधिक लाभ पहुंचाता है। दिल्ली में ‘आप’ सरकार अपने राज्य के बजट का एक चौथाई शिक्षा पर खर्च करती है। किसी भी अन्य राज्य सरकार की तुलना में यह अधिक है। चुनावी राज्यों में आम आदमी पार्टी ने सरकारी स्कूलों में मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का वादा किया है। इसी तरह आम आदमी पार्टी की सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना ने उनके लिए पहले से कहीं अधिक अवसर खोले हैं। महिलाओं के लिए 2019 के अंत में बसें मुफ्त करने के बाद महिला सवारियों में 33 फीसदी की वृद्धि हुई, जिसका अर्थ है कि महामारी से पहले महिलाओं द्वारा प्रति दिन 5 लाख और हर महीने 1.5 करोड़ अतिरिक्त यात्राएं की गईं। सार्वजनिक बस परिवहन पर अधिक निर्भर रहने वाले शहर के लिए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। आम आदमी पार्टी ने 18 वर्ष से अधिक उम्र की प्रत्येक महिला को 1 हजार रुपये मासिक गारंटी आय देने का वादा किया है। इससे न केवल घरों के भीतर बल्कि समाज में भी महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा। महिलाओं के पास रुपये पहुंचने से निर्णय लेने की शक्तियों का विस्तार होगा। इससे घरेलू खर्च को महिलाओं की जरूरतों जैसे शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल आदि पर केंद्रित किया सकेगा। आम आदमी पार्टी की ओर से महिलाओं के लिए किए गए वादे किसी भी तरह से एक आमूलचूल योजना नहीं बल्कि सिर्फ शुरुआत है। हमारी राजनीति की त्रासदी यह रही है कि महिलाओं को सशक्त बनाने के ऐसे बुनियादी कदमों को भी अतिवादी माना जाता है, क्योंकि कोई अन्य पार्टी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।

जस्मिन शाह, अक्षय मराठे

राज्यों में चल रहे चुनावों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुद्दों का चयन है। ‘दिल्ली मॉडल’ के बल पर लड़ते हुए आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव अभियान को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर केंद्रित रखा है, जिन्हें भारतीय राजनीति में लंबे समय से वर्जित माना जाता रहा है और जो बीजेपी-कांग्रेस की राजनीतिक शब्दावली में भी नहीं आता। ऐसा ही एक मुद्दा जिसे लंबे समय तक राजनीतिक अभियानों में अनदेखा किया गया, वह है भारत की महिलाओं की दयनीय स्थिति। विश्व आर्थिक मंच के अनुसार 2021 में लिंग अंतर सूचकांक में 156 देशों में से भारत 140 वें स्थान पर है। पिछली बार के मुकाबले 28 स्थानों की गिरावट है। 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए ‘आप’ द्वारा किए गए वादे महिलाओं की स्थिति में सुधार का एक शक्तिशाली अजेंडा पेश करते हैं।

भारतीय महिलाओं का जीवन आसान नहीं है। महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी 2005 में 31.8 फीसदी के अपने चरम पर पहुंचने के बाद पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिर रही है। महामारी की चपेट में आने के बाद यह अब तक के सबसे निचले 9.4 फीसदी पर आ गई है। महिलाओं में बेरोजगारी भी पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है। शहरी महिला बेरोजगारी दर 21.9 फीसदी और पुरुष बेरोजगारी दर 11.7 फीसदी है।
महामारी से पहले के सरकारी स्कूलों के नामांकन के आंकड़े बताते हैं कि भारत के सरकारी स्कूलों में लडक़ों की तुलना में लड़कियां अधिक हैं। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (्रस्श्वक्र) 2020 से पता चला है कि 6-8 वर्ष की लड़कियों में से 62 फीसदी सरकारी स्कूलों में जाती हैं और बाकी निजी स्कूलों में। लडक़ों में आंकड़ा 52.1 फीसदी है। इसका एक कारण यह भी है कि परिवार लड़कियों की तुलना में लडक़ों की शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं।

सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या अधिक होने का अर्थ यह भी है कि सार्वजनिक शिक्षा पर खर्च किया गया रुपया लडक़ों की तुलना में लड़कियों को अधिक लाभ पहुंचाता है। दिल्ली में ‘आप’ सरकार अपने राज्य के बजट का एक चौथाई शिक्षा पर खर्च करती है। किसी भी अन्य राज्य सरकार की तुलना में यह अधिक है। चुनावी राज्यों में आम आदमी पार्टी ने सरकारी स्कूलों में मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा का वादा किया है।
इसी तरह आम आदमी पार्टी की सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा योजना ने उनके लिए पहले से कहीं अधिक अवसर खोले हैं। महिलाओं के लिए 2019 के अंत में बसें मुफ्त करने के बाद महिला सवारियों में 33 फीसदी की वृद्धि हुई, जिसका अर्थ है कि महामारी से पहले महिलाओं द्वारा प्रति दिन 5 लाख और हर महीने 1.5 करोड़ अतिरिक्त यात्राएं की गईं। सार्वजनिक बस परिवहन पर अधिक निर्भर रहने वाले शहर के लिए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है।

आम आदमी पार्टी ने 18 वर्ष से अधिक उम्र की प्रत्येक महिला को 1 हजार रुपये मासिक गारंटी आय देने का वादा किया है। इससे न केवल घरों के भीतर बल्कि समाज में भी महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा। महिलाओं के पास रुपये पहुंचने से निर्णय लेने की शक्तियों का विस्तार होगा। इससे घरेलू खर्च को महिलाओं की जरूरतों जैसे शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल आदि पर केंद्रित किया सकेगा।
आम आदमी पार्टी की ओर से महिलाओं के लिए किए गए वादे किसी भी तरह से एक आमूलचूल योजना नहीं बल्कि सिर्फ शुरुआत है। हमारी राजनीति की त्रासदी यह रही है कि महिलाओं को सशक्त बनाने के ऐसे बुनियादी कदमों को भी अतिवादी माना जाता है, क्योंकि कोई अन्य पार्टी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।

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