अस्पताल ले जाते समय आग से झुलस चुके एक एक कर्मचारी ने टूटती सांसों को संभालते हुए जंगल में मचे इस मौत के तांडव के बारे में बताया तो उसकी आपबीती सुनकर वन कर्मियों के रोंगटे खड़े हो गए। झुलसा वन कर्मी कभी अपने साथियों की कुशलक्षेम पूछता तो कभी अपने परिजनों को पास बुलाने की गुहार लगाता। उसकी ऐसी हालत देख वन कर्मियों की आंखें भर आई और उसे सब कुछ ठीक होने की सांत्वना देते देते अस्पताल तक लेकर पहुंचे।
बृहस्पतिवार को बिनसर अभयारण्य में हुई वनाग्नि की घटना में चार लोगों की जिंदा जलकर मौत हो गई जबकि चार गंभीर रूप से झुलस गए। घायल वन कर्मियों को जब अन्य वन कर्मी उपचार के लिए अल्मोड़ा लेकर आ रहे थे तो झुलसे एक वन कर्मी ने बड़ी हिम्मत कर आपबीती बयान की। उसने बताया कि आग लगने की सूचना पर वह और सात अन्य साथियों के साथ विभाग के वाहन से मौके पर पहुंचे। वाहन से उतरने के बाद उन्होंने देखा की सड़क के नीचे ढलान से आग ऊपर की ओर आ रही थी। उस समय आठ वन कर्मियों में से कुछ आग बुझाने की रणनीति बना रहे थे और कुछ वाहन से अपना सामान बाहर निकाल रहे थे। तभी आग की लपटों ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। बचने की कोई उम्मीद बाकी नहीं रही। सभी कर्मचारी लपटों से बचने का प्रयास करते रहे लेकिन आग इतनी भयानक थी कि सड़क पर खड़ा वाहन तक उसकी चपेट में आ गया। एक-एककर सब धुएं के गुबार में गायब होने लगे और उसकी आंखों के सामने भी अंधेरा छा गया।
इसके बाद क्या हुआ उसे कुछ पता नहीं। एंबुलेंस में जब उसे होश आया तो लड़खड़ाती आवाज में कभी अपने साथियों की कुशलक्षेम पूछता तो कभी अपने परिजनों को पास बुलाने की गुहार लगाता। बीच-बीच में उसके जख्मों का दर्द असहनीय हो जाता तो वह चीखने लगता। मौके से अस्पताल तक पहुंचने तक का करीब एक घंटे का सफर वाहन में सवार अन्य वन्य कर्मियों के लिए बेहद मुश्किल भर था।
वन कर्मी चारों घायलों के सकुशल अस्पताल पहुंचने की भगवान से प्रार्थना करते रहे। हालांकि चारों घायलों को बेस अस्पताल तक तो पहुंचा दिया गया लेकिन दो की हालत गंभीर होने के कारण चिकित्सकों ने उन्हें हल्द्वानी रेफर कर दिया। सभी लोग बस यही दुआ कर रहे थे कि साथियों की जान बच जाए।
देर रात चारों घायल एंबुलेंस से पहुंचे एसटीएच